विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। सालभर पहले वहां कितनी धूम थी! कितने उत्साह से देवी दुर्गा की आराधना होती थी! सगे-संबंधियों के साथ पूरा मोहल्ला उमड़ पड़ता था। ढाक (बंगाल में दुर्गापूजा के दौरान बजने वाला विशेष वाद्य) की ध्वनि से पूरा वातावरण पावन हो उठता था। भोग (मां दुर्गा को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद) की सुगंध चारों तरफ फैल जाती थी। बत्तियों से पूरा मोहल्ला जगमगा उठता था।
ये सारा कुछ आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में दरिंदगी की शिकार हुई महिला जूनियर डॉक्टर के अथक प्रयास से संभव होता था। तिलोत्तमा (मृतका को दिया गया उपनाम) अपने मकान के गैरेज में धूमधाम से दुर्गापूजा का आयोजन करती थी।
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